लंबे संघर्ष व काम के बाद पार्टी का टिकट मिलने था अरमान, पर गठबंधन की सियासत ने खेल बिगाड़

यूपी । लंबे संघर्ष व काम के बाद पार्टी का टिकट मिलेगा इसका बड़ा अरमान था, पर गठबंधन की सियासत ने खेल बिगाड़ दिया। हालात कुछ ऐसे बने कि पहले के दावेदार नकार दिए गए और बाहर से आए लोग प्रत्याशी बन गए। कुछ ऐसे जुगाड़ लगाने में कामयाब रहे कि वह रातों-रात प्रत्याशी हो गए। ऐसे में टिकट कटने से क्षुब्ध नेता तीखे तेवर में दिखाई दे रहे हैं। कुछ तो कह रहे हैं कि दूसरे को टिकट देने के पार्टी नेतृत्व के फैसले को वे गलत साबित कर देंगे।

बात इतनी भर नहीं है। सबक सिखाने के लिए बगावत का झंडा उठाए ऐसे लोग अब या छोटे दलों के जरिए मैदान में कूद गए हैं या फिर निर्दलीय ही ताल ठोंक रहे हैं। कुछ ने ऐन वक्त पर बसपा से भी टिकट का इंतजाम कर लिया। अब सवाल यह है कि यह विद्रोही खुद चुनाव जीतेंगे या मूल दल के प्रत्याशी का खेल बिगाड़ देंगे। यही चिंता उन लोगों की है जिन पर नेतृत्व ने भरोसा जता कर मैदान में उतारा है। मुरादाबाद से एक वर्तमान विधायक का टिकट कटा तो उसने पहले तो आगे पार्टी आलाकमान के आगे नाराजगी जताई। नेतृत्व ने उन्हें पार्टी के लिए फिलहाल त्याग करने की सलाह दी। साथ ही आगे अच्छी जगह एडजस्ट करने का भरोसा दिया। पर वह नहीं माने। अब वह बसपा से मैदान में हैं। वह दावा करते हैं कि जीत कर आएंगे और शीर्ष नेतृत्व से कहेंगे कि आपने टिकट नहीं दिया फिर भी हम जीत कर आ गए। ऐसा ही क्षोभ उन तमाम विधायकों में है जो टिकट पक्का करने के लिए काफी समय से लगे थे। अब तीन चरणों का चुनाव निपट गया। बाकी के चरणों में 231 सीटों में तमाम जगह बागी कहीं मजबूती से लड़ रहे हैं तो कहीं वोट कटवा वाली स्थिति में भी हैं।

भाजपा के बागी बन सकते हैं मुसीबत

भाजपा के तेजतर्रार विधायक सुरेंद्र सिंह को जब बैरिया से टिकट नहीं मिला तो वह बागी तेवर दिखाते हुए एक छोटे से दल के जरिए मैदान में उतर गए। इसी बैरिया से उनके सामने भाजपा प्रत्याशी व राज्यमंत्री विधायक आनंद शुक्ला लड़ रहे हैं। अब दो विधायक आमने-सामने हैं।