बेटियों की सुरक्षा और सम्मान की बेहतर सामाजिक व्यवस्था है, पारधी जनों में

अंडा। छत्तीसगढ़ में निवासरत वनवासियों, आदिवासियों और जनजातियों के लोगों में अपने समाज की बेहतरी के लिए कई अनोखे तरीके आज भी प्रचलित हैं ,जो उनके अपने सामाजिक संविधान से कमतर नहीं हैं। यहां निवासरत 42 जनजातियों में पारधियों की विशेष पहचान की गई है, जो छत्तीसगढ़ के अधिकांश जिलों में निवास करते हुए अपने पूर्व के व्यवसाय पशु-पक्षियों पक्षियों का शिकार करने, जिंदा पकड़ने और उनसे अपनी आजीविका चलाने के स्थान पर खेत-खलिहान, बांधों, नहरों, नदियों की तराइयों में उगे छिंद की कोमल पत्तियों से झाडू, चटाई, टोकरी आदि बेचकर अपने जीवन- यापन करने वाले पारधियों में अपनी बेटियों की सुरक्षा और सम्मान की बेहतर व्यवस्था है। जनजाति शोधार्थी राम कुमार वर्मा ने ग्राम थनौद, करंजा भिलाई, रिंगनी, देवबलौदा, चिरपोटी, माड़ीतराई,नंदौरी, शिकारी बीजा, गोंड बीजा, बघेरा, अखरा, गनियारी, कुथरेल, केम्प-एक भिलाई, रानीतराई, पावरहाउस, सहित अन्य स्थान के पारधी जनजाति के प्रमुख लोगों से अपने समुदाय विस्तार सेवा के अंतर्गत निरंतर संवाद कर उनकी सामाजिक व्यवस्था, लोक संस्कृति, जनजीवन, लोक पर्व, देवी-देवताओं, लोक अनुष्ठान, विलुप्त होती भाषिक संपदाओं, लोक साहित्यिक परंपराएं आदि का शोधपरक आलेख तैयार कर रहे हैं। इसी कड़ी में विगत दिनों थनौद में गोत्र परंपरा की चर्चा की गई, जिसमें वरिष्ठ पारधी जन गेंदु, युवा कार्यकर्ता डॉ. अमित पारधी आदि ने जानकारी देते हुए बताया कि भारत भर अलग-अलग नाम से पारधी समुदाय कू लोग निवास करते हैं। पत्र छत्तीसगढ़ में साढ़े बारह गोत्रों के लोग निवास करते हैं। इनमें पुवार, सिसोदिया और सोलंकी मुख्य पारधी हैं। इसके अंतर्गत संपूर्ण भारतीय समाजों में जहां गोत्र परंपरा पुरुषों से प्रारंभ होती है, वहीं पारधियों में अपनी बेटी का किसी दूसरी जाति के युवक से विवाह कर लेने अर्थात् मनपसंद शादी कर लेने पर वे अपनी बेटी को अपने समाज में एक नया गोत्र का नाम देकर शामिल कर लेते हैं। इस तरह उनकी गोत्र परंपरा निरंतर बढ़ती चली जाती है। इस सामाजिक व्यवस्था को वे आज भी बनाए रखे हुए हैं। इससे एक ओर जहां बेटी का किसी तरह से तिरस्कार नहीं होता। वहीं गोत्र की परंपरा निरंतर बढ़ती चली जाती है। जबकि पारधी युवतियों से विवाह करने वाले युवकों उनके समाज से पृथक कर दिया जाता है। ऐसे में पारधी नए गोत्र बना कर अपने समुदाय में शामिल करते हैं। यह व्यवस्था पूरी तरह से भारतीय संविधान सम्मत है।