ईश्वर भक्ति के लिए उम्र का कोई बंधन नही-स्वामी निरंजन महराज…बोरई में चल रहा श्रीमद भागवत कथा

संजय साहू

अंडा। जब हम संसार की उपलब्धि को ही जीवन का सुख मानना शुरू कर देते हैं हमारे जीवन में भटकाव का मार्ग खुल जाता है ,हम सबके अंदर भी दो रानी है,सुरुचि और सुनिति। संसार के तरफ मन को ले जाने वाली सुरुचि और ईश्वरीय सत्ता के तरफ ले जाने वाली सुनिति। संतों ने मन की तुलना मक्खी से किया है।भगवत भक्ति के लिए अवस्था की कहीं कोई बंधन नही है। भगवान सरल हैं,हम अपनी बुद्धि लगाकर कठिन बना लेते हैं। ईश्वर व्यापक है,सबसे परे भी हैं और सबके अंदर भी हैं जरूरत है उसे अनुभूति करने का। जितने भी पूजा के प्रकार है,साधना,जप ,तप,ध्यान, योग ,यज्ञ सबका लक्ष्य एक है और वह है मनो विग्रह।


दुर्ग ग्रामीण विधान सभा क्षेत्र के ग्राम बोरई में दीपक यादव परिवार एवं ग्रामवासियों के सहयोग से चल रहे भागवत कथा यज्ञ सप्ताह में भगवताचार्य स्वामी निरंजन महराज लिखता आश्रम लिमतरा ने ध्रुव चरित्र कथा भाव संदर्भ में उक्त बातें कही। प्रारब्ध,पुरषार्थ,माता पिता का आशीर्वाद,सदगुरु की कृपा के बिना भगवान् का कृपा प्राप्त होने वाला नही है। दृढ़ संकल्प,अखंड विश्वास कठिन पराक्रम से बालक ध्रुव ने अटल पद को पा लिया। शुभ संकल्प मनोबल और पुरषार्थ से भरे मनुष्य के जीवन में निराशा की परछाई भी नही आ सकता। चरैवेति,चरैवेति विधि का सूत्र है।सुख दुःख,जय पराजय,लाभ हानि,जीवन मरन,का नाम संसार है। सरल बनकर ईश्वर भक्ति के साथ चलते रहो तो जीव का कल्याण होगा। जो सब में भगवान् का दर्शन करता है,वह प्रहलाद के चरित्र को धारण करता है। जिसका मन भगवान् के चरणों में रत है वो जगत को राममयी देखते हैं अत:वो कहीं पर भी किसी का विरोध नही करते,जैसे प्रहलाद ने किसी को बैर भाव नही ईश्वर भाव से देखा। उस पिता के लिए भी भगवान् का आश्रय मांग लिया जो उनके प्राण पिपासु था। लज्जा तो हमें तब होती है जब इसी प्रहलाद की धरती में आज वृद्धाश्रम की जरूरत पड़ने लग गयी है। कथा सुनने का नही गुनने का विषय है।