Timeless Tradition : नारधी,जहाँ 61 साल से 4 दिवसीय रामलीला का मंचन…अपने पात्र को जीवंत करने खूब मेहनत करते हैं कलाकार,66 वर्षीय डेरहादास 35 वर्षों से निभा रहे माता शबरी का किरदार

राजू वर्मा

पाटन।रामलीला एक ऐसा मंचन है जिसे कालातीत नहीं कहा जा सकता। यह अवश्य है कि आज के बदलते परिवेश में दर्शकों की संख्या कम हो गई है। रामलीला एक ऐसा आदर्श परक सांस्कृतिक कार्यक्रम है, जिसमें किरदारों की जीवंतता की प्रमुख भूमिका होती है।

पाटन क्षेत्र में शारदीय नवरात्र में हर गाँव में रामलीला का आयोजन होता है|जगह-जगह ग्रामीण लोग अपने सहयोग से रामलीला का आयोजन करते चले आ रहे हैं|
आज के कंप्यूटरीकरण तथा नव तकनीकी युग में आकर्षण की भूख ने रामलीला की लोकप्रियता में ग्रहण लगा दिया है।और रामलीला सिमट कर एक दिन का ही रह गया है।
ऐसे समय में जबकि अधिकांश रामलीला मंडलीय समाप्त हो चुकी है और लोग अपनी व्यस्तता के कारण नहीं निभा पा रहे हैं,ऐसे समय मे पाटन के ग्राम नारधी गांव वाले पूरे तन मन धन से सहयोग करते हैं और गाँव मे चार दिवसीय रामलीला का मंचन करते हैं, इस ऐतिहासिक परंपरा का निरंतर चलते रहना उन्हें गौरवान्वित करते रहता है, यंहा तक कि अपनें सगे सम्बनधियों को भी रामलीला देखने के लिये आमंत्रित करतें है।


ग्रामीण बताते हैं कि ग्राम में 1961 से रामलीला की शुरुआत हुई,रामदीन महाराज जो सिरसा कला निवासी थे और नारधी में रहकर मंदिर मे पूजा करते थे, भगवान दास मुख्य सहयोगी थे, जो हारमोनियम वादन के साथ मुकुट आदि सिंगार समान को अपनें हाथों से बनाये थे प्रारम्भ मे वे गाँव मे भजन कीर्तन करते थे फिर कुछ लोग गांव मे जोकर आदि बनकर फिर रामायण के विभिन्न पात्रों का स्वांग किया करते थे फिर ऐसे ही रामलीला की शुरुआत हूई।

गाँव के की होते हैं रामलीला के कलाकार

महीनों पहले रामलीला के कलाकारों का रिहर्सल प्रारंभ कर दिया जाता है| हर कलाकार को उसके रोल को लिख करके दे दिया जाता है और उससे कहा जाता है कि अपने संवाद कि वह रिहालसल करें| लीला में लगभग 35 कलाकार भगा लेते हैं सभी कलाकार गाँव के ही होते हैं और अपने पात्र को जीवंत करने के लिए खूब मेहनत भी करते हैं, आपको बता दे गाँव के 66 वर्षीय डेरहादास मानिकपुरी लगभग 35 वर्ष से माता सबरी का किरदार निभा रहे है।

डेरहादास मानिकपुरी शबरी के किरदार में

गाँव मे चार दिवसीय रामलीला में वन गमन, दशरथ केकई संवाद, राम केवट प्रसंग, सीता हरण, बाली वध, मेघनाथ कुंभकरण रावण वध का मंचन किया जाता है।

जब हमने रामलीला समिति केसदस्यों से बात की तो उनका कहना था किहम सभी लोग आभारी हैं उस विचार के , जिसने हमारी भूमि पे राम-लीला मंचन आयोजित करने की प्रथम नींव रखी । लगभग 61 वर्षो से राम लीला का सफल आयोजन अपने आप में एक उपलब्धि है । हमें उम्मीद है कि ये पीढ़ी भी इस परंपरा को जीवित रखते हुए अगली पीढ़ी को हस्तांतरित करेगी”