पाठकों की पाती में आज हरेली तिहार पर विशेष यह कविता युवा कवि अशोक यादव मुंगेली की कलम से , आप भी पढ़िए

छत्तीसगढ़ के पहली तिहार हरेली

सावन म सबो कोती हरियाली के हे बहार।
चलव मनाबो छत्तीसगढ़ के पहली तिहार।।

किसान ह धान बों डरिस खेत अउ भांठा।
नांगर, कुदरी, रापा ल धोके पारही हांथा।।

रचमच-रचमच गेंड़ी चढ़हे लईका मन आहीं।
मुसुर-मुसुर गुड़हा चीला ल जम्मों झन खाहीं।।

पाखा म सवनाही बनाथें सबो माई लोगिन।
घर के बाहिर म बनाहीं गोबर के परेतीन।।

यादव ह घरो-घर नीम के डारा ल खोंचही।
लोहार ह चौखट म लंबा खीला ल ठोंकही।।

जुरमिल के कुटकी देबी के पूजा ल करबो।
मवेसी के बचईया देवता गोरइंया ल मनाबो।।

कबड्डी अउ नरियर फेंकउला के खेलबो खेल।
गेंड़ी दउड़ अउ नाचा ले संगी संग होही मेल।।

कवि- अशोक कुमार यादव मुंगेली, छत्तीसगढ़
जिलाध्यक्ष राष्ट्रीय कवि संगम इकाई।