श्रावण सोमवारी का प्रथम सोमवार आज, शिवालय में जुटेंगे शिवभक्त…श्रीकुलेश्वरनाथ महादेव मंदिर समिति की तैयारी पूरी, श्रद्धालुओ को नहीं होंगी कोई भी दिक्कत

नवापारा राजिम ।श्रावण सोमवारी का प्रथम सोमवार आज से प्रारम्भ होने जा रहा है. जिसे लेकर शिव भक्तो में भारी उत्साह है. इस अवसर पर शिवभक्त शिवालय में जुटकर अपने आराध्य को मनाने का पूरा प्रयास करेंगे.
श्रावण सोमवारी को लेकर त्रिवेणी संगम के मध्य स्थित विश्व प्रसिद्ध श्री कुलेश्वर नाथ महादेव मंदिर सहित आस पास अंचल के सभी शिवालय में व्यवस्था पूरी कर ली गई है. त्रिवेणी संगम स्थित भगवान श्री कुलेश्वरनाथ महादेव मंदिर में लाइट व फूलो से सजाया गया है. भक्तो की भारी भीड़ व आस्था को देखते हुए इस बार भी श्रद्धालुओ हेतु गर्भ गृह के मुख्य गेट पर एक घड़ा रखा गया है जहाँ पर श्रद्धालुगण अपने कांवर का जल या मनोव्रती श्रद्धालु उसमे जल चढ़ाएंगे जो सीधे सीधे माता सीता द्वारा निर्मित शिवलिंग पर जाकर प्रवाहित होगा.

मंदिर परिसर फिलहाल अभी भी चारो ओर से पानी से घिरा हुआ है लेकिन इस बार इसकी बिलकुल भी चिंता श्रद्धांलुओं को नहीं है क्योंकि लक्ष्मण झूला अब बनकर तैयार है जिसकी मदद से श्रद्धालु बाढ़ के हालात में भी मंदिर तक पहुँच सकेंगे. इसके अलावा दर्शकों को भारी भीड़ को देखते हुए यहाँ पर धमतरी जिला पुलिस के जवान यहाँ पर मुस्तैदी से तैनात रहेंगे. श्रीकुलेश्वरनाथ महादेव मंदिर समिति के राजू ठाकुर, संतोष सिंह राजपूत, भागवत मिश्रा, गिरी राजपूत, देवेंद्र महाराज, विशाल नाथ योगी, मोहन नाथ योगी, हीरालाल निषाद आदि ने बतायाकि श्रद्धालु भक्तो को कोई भी दिक्कत न हो इसका पूरा ख्याल रखा जायेगा. श्रावण सोमवारी के प्रथम सोमवार को आज सुबह 3 बजे मंदिर का पट खुलेगा. भगवान श्रीकुलेश्वरनाथ महादेव का भव्य अभिषेक होगा. फिर प्रातः 8 बजे भव्य आरती पश्चात प्रसादी वितरण किया जायेगा.

लक्ष्मण झूला के बनने से अब नहीं होंगी शिवभक्तो को कोई भी परेशानी

श्रावण माह का यह महीना एक एतेहासिक दिन बनने जा रहा है जब मंदिर के इतिहास में यह दूसरी बार होगा जब बाढ़ के स्थिति में भी शिवभक्त कांवर का जल चढ़ाने मंदिर तक पहुँच सकेंगे. विगत कई वर्षो से निर्माणधीन सस्पेंशन ब्रिज लक्ष्मण झूला बनकर तैयार है और अब श्रद्धालु यहाँ से आना जाना भी कर रहे है. इससे पहले बाढ़ के दौरान यह मंदिर बाढ़ की चपेट में होता था तो शिव भक्त नदी तट पर ही पूजन अर्चन कर जल अर्पित कर चले जाते थे. लेकिन लक्ष्मण झूला के निर्माण हो जाने से अब शिवभक्त आसानी से वर्ष भर बाढ़ की स्थिति में भी मंदिर तक पहुँच सकते है. और भगवान भोलेनाथ का दर्शन कर सकते है. लक्ष्मण झूला के लोकार्पण से लोगो में भारी ख़ुशी है और सभी हर्षित भाव से सरकार के प्रति धन्यवाद ज्ञापित कर रहे है.वही इसकी खूबसूरती इतनी हैँ की कोई भी श्रद्धालु भक्त अपने आपको यहाँ की सेल्फी लेने से नहीं रोक पा रहा हैँ.

वनवास काल के दौरान माता सीता ने किया था शिवलिंग को स्थापित

राजिम का श्री कुलेश्वर नाथ महादेव मंदिर महानदी, पैरी और सोंढूर नदियों के त्रिवेणी संगम पर स्थित है.इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि जिस जगह मंदिर स्थित है, वहां कभी वनवास काल के दौरान मां सीता ने देवों के देव महादेव के प्रतीक रेत का शिवलिंग बनाकर उसकी पूजा की थी। आज जो मंदिर यहां मौजूद है उसका निर्मांण आठवीं शताब्दी में हुआ था।

स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना, हैरान कर देती है नींव की मजबूती

राजिम के त्रिवेणी संगम के बीच में वर्षों से टिका कुलेश्वर महादेव मंदिर स्थापत्य का बेजोड़ नमूना है। करीब 1200 साल पहले बना यह मंदिर प्राचीन भवन निर्माण तकनीक का अनोखा उदाहरण है। तीन नदियों के संगम पर स्थित होने के कारण यहां बारिश के दिनों में नदियां पूरी तरह आवेग में होती हैं। इसके बीच अपनी मजबूत नींव के साथ मंदिर सदियों से टिका हुआ है।

जैसे ही शिवलिंग को छूता है बाढ़ का पानी….

मंदिर का दर्शन करने देशभर से लोग यहां पहुंचते हैं। राजिम में नदी के एक किनारे पर भगवान राजीवलोचन का मंदिर है और बीच में कुलेश्वर महादेव का मंदिर। किनारे पर एक और महादेव मंदिर है, जिसे मामा का मंदिर कहा जाता है। कुलेश्वर महादेव मंदिर को भांजे का मंदिर कहते हैं। किंवदंती है कि बाढ़ में जब कुलेश्वर महादेव का मंदिर डूबता था तो वहां से मामा बचाओ आवाज आती है। इसी मान्यता के कारण यहां आज भी नाव पर मामा-भांजे को एक साथ सवार नहीं होने दिया जाता है। नदी किनारे बने मामा के मंदिर के शिवलिंग को जैसे ही नदी का जल छूता है उसके बाद बाढ़ उतरनी शुरू हो जाती है।इसके अतरिक्त श्री कुलेश्वर महादेव मंदिर के पास तपस्वी संत लोमश ऋषि का आश्रम भी हैँ जो अपनी तपोभूमि के लिए प्रसिद्ध हैँ.

तराशे गए पत्थरों से बना है विशाल मंदिर

मंदिर का आकार 37.75 गुना 37.30 मीटर है। इसकी ऊंचाई 4.8 मीटर है मंदिर का अधिष्ठान भाग तराशे हुए पत्थरों से बना है। रेत एवं चूने के गारे से चिनाई की गई है। इसके विशाल चबूतरे पर तीन तरफ से सीढ़ियां बनी हैं। इसी चबूतरे पर पीपल का एक विशाल पेड़ भी है। चबूतरा अष्टकोणीय होने के साथ ऊपर की ओर पतला होता गया है। मंदिर निर्माण के लिए लगभग 2 किलोमीटर चौड़ी नदी में उस समय निर्माताओं ने ठोस चट्टानों का भूतल ढूंढ निकाला था।