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कहिके गे हे हमर पुरखा
घुरवा के दिन घलो बहुरथे
सिरतोन हे उकर भाखा
सौंहत आँखी मा जब वो दिखथे।
फेर में तो हव इहि के माटी
हरव में छत्तीसगढ़ के थाती
का लइका अउ का सियान
का कमइया अऊ का किसान
का गरीब अउ का अमीर
का घर दुआर अउ का खेत के तीर
कोनो बेरा हो या कोनो ठिया
खाके मोला अउ पीके पसिया
हो बिहनिया या हो मंझनिया
पेट भर के निकले कमइया।
पहिली रिहिस इहि रीति रिवाज
सेहत अउ लम्बा जिनगी के राज
धीरे धीरे लोगन मोला बिसराये लागिस
मॉडर्न के चक्कर मा, मोला तिरियाए लागिस
मोला गरीबहा के पहिचान समझिस
अपन सँस्कृति अउ सेहत ला बोरे लागिस।
फेर सिरतोन ला कोंन अउ कब तक झुटलाही
अपन पहिचान अउ संस्कृति ले दूर भागही
आधुनिकता के पांखी ले
शोध रिसर्च के आँखि ले
दिखला दिस पहिचान मोर
खनिज ऊर्जा के हे भरमार
मन के संग तन ला घलो रखे ठंडा
गर्मी लू ला कर देते थे ठंडा।
मोर छत्तीसगढ़ के वासी
मन ला झन कर उदासी
लहुटो थोड़किन अपन गांव कोती
ममहावे माटी जेकर बारो मासी
गोहरावत हो मे तुंहर बोरे-बासी।
–शीतल साहू