माँ
माँ मै तो तेरी ही रचना हूँ ..
आज अपनी ही रचना पर क्या लिखूँ?

हर पल हर दिन मेरे लिए खास हो माँ,
एक अनकही सी कहानी हो माँ ,
जिनकें लिए शब्द हि नहीं मिल रहे है ,
जज्बात भी मेरे खो से गए है…
कहाॅं से शुरू कहाॅं तक लिखू ऐसी अबुझ पहेली हो मॉं।
सभी के सपनो में हीअपना पुरा सपना
जी लेती हो,
दे जाती हो जिन्दगी को एक नया आयाम
और खुद ही कहीं खो जाती हो माँ..
कहाँ माँगा हैं आज तक ईश्वर से अपने लिए कभी,
शामिल् करती हो हमें अपनी हर दुआओ में मॉं…
इस इश्वर जैसी ही रचना पर माँ मैं क्या लिखूँ ?
(अनीता वर्मा)