छत्तीसगढ़ के युवाओं के लिए जल्द शुरू होगा, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (AI) का प्रशिक्षण

रायपुर।छत्तीसगढ़ में शिक्षा क्षेत्र में बढ़ते निवेश के बावजूद, लोगो में बीच तकनीकी ज्ञान और पारस्परिक कौशल के बीच एक अंतर बना हुआ है। यह व्यक्तिगत और व्यावसायिक जीवन दोनों में चुनौतियों का कारण बन सकता है, क्योंकि किसी भी क्षेत्र में सफलता के लिए प्रभावी ढंग से संवाद करने और दूसरों के साथ काम करने की क्षमता आवश्यक है। यह समस्या विशेष रूप से भारत के टियर 2 और टियर 3 शहरों में पाई गयी है, जहां उचित प्रशिक्षण की कमी और कौशल अंतराल के परिणामस्वरूप युवाओं की एक पीढ़ी में प्रमुख सॉफ्ट स्किल्स की कमी है। ये कहना है, छत्तीसगढ़ के आईटी इंजीनियर और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के विशेषज्ञ समीर रंजन।

विश्व के 100 प्रमुख आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) विशेषज्ञों में शुमार, रंजन के मनाना है कि, हम दुनिया के सबसे अच्छे प्रौद्योगिकीविद् हो सकते हैं, लेकिन अगर हम पश्चिम की विचारधाराओं का सम्मान नहीं करते हैं और उनके प्रति केवल आलोचनात्मक रवैय्या अपनाते हैं, तो हम वैश्विक स्तर के कई अवसरों से वंचित रह जायेंगे।

और इसका उपाय है,’ मायामाया कार्ययोजना’ जो समाधान स्वरूप, लोगों को यह पता लगाने में मदद करते हैं कि वे कौन हैं और उनकी वास्तविक ताकत क्या है।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की तीव्र प्रगति ने इस मुद्दे को और जटिल बना दिया है, और व्यक्तियों को कार्यबल में प्रासंगिक बने रहने के लिए अपस्किल करने की आवश्यकता है, जो कि मजबूत पारस्परिक कौशल के बिना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।

इस तकनीकी कमी को दूर करने के अपने अद्यतन प्रयास में, समीर रंजन, छत्तीसगढ़ के युवाओं के लिए एक तत्वीरित एक योजना पे कार्य कर रहे हैं, जिसके तहत न केवल युवाओं को, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के कार्यप्रणाली को समग्र रूप में समझने में मदद मिलेगी बल्कि, इस बारे में प्रशिक्षण उन्हें, नए दिशा के रोजगार पाने में भी उचित मदद करेगी।

रंजन,भारत ने दुनिया के लिए वैश्विक सॉफ्टवेयर विकास केंद्र बनने की सच्ची क्षमता दिखाई है। दुनिया के किसी भी अन्य देश की तुलना में, भारत के पास अगले 10-15 वर्षों के लिए बहुत तेजी से पदों को भरने के लिए बड़ी आबादी में प्रतिभाशाली इंजीनियर, कार्यक्रम प्रबंधक हैं। भारत के लिए इसका मतलब यह है कि बाजार में मांग और आपूर्ति में भारी अंतर होने जा रहा है, जहां मांग इतनी अधिक होगी कि हम प्रतिभा की आपूर्ति नहीं कर पाएंगे। मगर इससे बड़ी समस्या यह होगी कि- इन वैश्विक क्षमता केंद्रों (जीसीसी) के लिए सही कौशल का पता कैसे लगाया जाए।

जीसीसी को एक ऐसा आख्यान खोजना होगा जहां वे न केवल तकनीक बेच रहे हों बल्कि अपनी फर्म के मानवीय पहलू को पेश कर रहे हों। मानवीय पहलुओं में उनके कर्मचारियों के व्यक्तित्व के साथ-साथ उनके कौशल भी शामिल होंगे। यदि सामूहिक रूप से एक फर्म के औसत मूल्य अनुबंध करने वाली कंपनी की अपेक्षाओं से मेल खाते हैं तभी वह फर्म उस कंपनी के साथ काम करने में सक्षम होगी। याद रखें कि पिछली बार आपने विदेशी फर्मों के साथ सौदा कब खोया था, 10 में से 8 बार कारण यह नहीं होगा की आपके पास तकनीकी कौशल की कमी है, बल्कि इसका आधार संगठन के कल्चर से मेल न खाना होगा। और कल्चर का मेल खाना कर्मचारियों की सामूहिक योग्यता (व्यक्तित्व मैट्रिक्स) पर आधारित होता है। जीसीसी के रूप में आवश्यक है की आप अपनी कंपनी संस्कृति और परियोजना के प्रति अपना दृष्टिकोण निर्धारित करें, जिससे आपको अनुबंध पाने में आसानी हो।

रंजन कहते हैं, की वो और उनकी टीम इस वर्ष छत्तीसगढ़ के विभिन्न जिलों में ये प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करेगी और वो प्रयास करेंगे कि, जिन युवाओँ ने इसका प्रशिक्षण लिए है, उन्हें नियोक्ताओं के साथ काम करने का भी अवसर मिले ताकि वो और दक्ष हो सकें।

भारत में बेरोजगारी अभी भी एक समस्या है, लेकिन मेरा विश्वास है की तेज़ी से हो रहे विकास से यह समस्या अतीत की बात हो जाएगी, हमे सिर्फ कौशल अंतराल खोजने के लिए तकनीकों को लागू करने की आवश्यकता हैं। हम ढेर सारी नौकरियां सृजित करेंगे लेकिन इस अंतर को पाटे बिना समस्या का हल नहीं हो सकता।
कुल मिलाकर, तकनीकी ज्ञान और पारस्परिक कौशल के बीच का अंतर एक महत्वपूर्ण मुद्दा है जिसे संबोधित करने की आवश्यकता है ताकि भारत में युवा पीढ़ी नेतृत्व की भूमिका निभाने और वैश्विक कार्यबल में योगदान करने के लिए तैयार हो सके।

एक गम्भीर मुस्कान के साथ वो कहते हैं, की अगर युवा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) में प्रशिक्षित हो जाएंगे तो, उनके लिए नियोक्ता खुद अपने दरवाजे खोल देंगे।

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वर्तमान में, अमेरिका में कार्यरत समीर रंजन, पिछले कुछ दिनों से भारत मे हैं, और इन्होंने, एन. आई.टी रायपुर, बैंगलोर के विश्वविद्यालय, बी.आई.टी भिलाई, और शंकराचार्य विद्यालय में, इस विषय पर व्याखन दे चुके हैं।