जशपुर। ठंड के सीजन में जशपुर की वादियों से हर साल करीब 50 लाख रुपए से अधिक का शहद उत्पादन हो रहा है। पर इसका लाभ स्थानीय लोगों को नहीं मिल पा रहा है। झारखंड और बिहार के मधुमक्खी पालक जशपुर में आकर पेटियां लगा रहे हैं और शहर निकालकर ले जा रहे हैं। स्थानीय लोगों को शहद उत्पादन का लाभ देने के लिए प्रशासनिक प्रयास अबतक सफल नहीं हो पाए हैं।
जशपुर सन्ना मार्ग में इस वर्ष मनोरा ब्लॉक के ग्राम चड़िया, केसरा और हर्रापाठ में बाहरी कारोबारियों द्वारा मधुमक्खी की पेटियां लगाई गई हैं। इसके अलावा आस्ता व सन्ना इलाके में भी पेटियां लगाई जा रही हैं। ग्राम केसरा में मधुमक्खियों की पेटियां लगाने वाले दिलीप महतो ने बताया कि इस वर्ष केसरा में उसने 350 पेटियां लगाई हैं। यदि रामतिल सहित अन्य फूल अच्छे आए तो फरवरी माह तक पेटियां इस स्थान पर लगी रहेंगी। इन 4 महीनों में एक पेटी से कम से कम 4 से 5 बार मधुरस निकाला जा सकता है। दिलीप ने बताया कि एक पेटी से एक बार में कम से कम 2.5 किलो मधुरस निकलता है।

इस हिसाब से 4 महीनों में एक पेटी कम से कम 10 किलो शहर निकालते हैं। पूरे सीजन में अगर एक पेटी से कम से कम 10 किलो शहद निकल रहा है। सिर्फ केसरा में 350 पेटियां लगाई गई है। इस हिसाब से पूरी पेटियां मिलाकर सिर्फ केसरा गांव से 3500 किलो शहद इस वर्ष निकाला जाएगा। यदि शहद कम से कम 300 रुपए किलो के दाम में भी बेचा जाए तो केसरा में लगी पेटियों से 10 लाख 50 हजार का शहर निकाला जाएगा। ग्राम चड़िया और हर्रापाठ में इससे कहीं अधिक पेटियां लगाई गई हैं।
इधर: शहद प्रसंस्करण केन्द्र की मशीन खराब
शहद उत्पादन का लाभ स्थानीय लोगों को देने के लिए वन विभाग द्वारा करीब 12 साल पहले पनचक्की में शहद प्रसंस्करण केन्द्र की स्थापना की गई थी। शहद संग्रहण के लिए ग्रामीणों का समूह भी बनाया गया था। पर प्रसंस्करण केन्द्र में लगी मशीन बीते छह साल से खराब है। इसलिए शहद संग्रहण का काम भी नहीं हो पा रहा है। स्थानीय लोग शहद उत्पादन का लाभ नहीं उठा पा रहे हैं। शहद प्रसंस्करण केन्द्र से शहर की पैकेजिंग कर इसे जशपुर हर्बल शहद के नाम से संजीवनी विक्रय केन्द्र के माध्यम से प्रदेश भर में बेचा जा रहा था।
एमपी से कंपनी वाले आकर खरीद ले जाते हैं शहद
ग्राम केसरा में चलित पेटियां लगाकर मधुरस निकालने वाले ने बताया कि मधुरस की बिक्री के लिए उन्हें कहीं बाहर नहीं भटकना पड़ता है। मध्यप्रदेश से कई हनी कंपनियां हर साल इलाके में पहुंचती हैं और उनसे पूरा मधुरस खरीदकर ले जाती है। यहां से वे 300 रुपए प्रति किलो की दर पर मधुरस बेचने के बाद खाली पेटियां व मधुमक्खियां अपने साथ ले जाते हैं। यदि कंपनी वाले नहीं आए तो मधुरस भी ड्रम में भरकर वे ले जाते हैं, पर ऐसी नौबत नहीं आती है।
शहद प्रसंस्करण का ट्रायल किया जाएगा, रायपुर से आएगी टीम
शहद प्रसंस्करण केन्द्र में लगी मशीन खराब है। इसे सुधारने के लिए टेक्नीशियन को बुलाया गया है। मशीन में सुधार के बाद शहद प्रसंस्करण का ट्रायल किया जाएगा। इसके लिए रायपुर से टीम आएगी। ट्रायल के बाद शहद प्रसंस्करण से पैकेजिंग कर शहद की बिक्री फिर से शुरू की जाएगी। संग्रहण के लिए समूहों को फिर से सक्रिय किया गया है। स्थानीय लोगों को फायदा दिलाने के लिए चलित पेटियां लगाने वालों से संपर्क किया जा रहा है।
जितेन्द्र उपाध्याय, डीएफओ, जशपुर