महिलाओ ने संतान की लंबी उम्र के लिए कमरछठ (हलषष्ठी) त्योहार मनाया, पाटन सहित ग्रामीण क्षेत्र में की सगरी बनाकर पूजा अर्चना

पाटन। आज छत्तीसगढ़ में भादो ( भाद्रपद ) के कृष्ण पक्ष में षष्ठी (छठवे दिन) को कमरछठ तिहार मनाया गया। यह प्रमुख त्योहारों में से एक है। कमरछठ को हलषष्ठी भी कहा जाता है। ।इसी कड़ी में पाटन नगर सहित ग्रामीण क्षेत्र में महिलाओ ने एक साथ एकत्र होकर सगरी पसहर चावल , बेल पत्ती सहित छ: प्रकार के पूजा के समान में उपयोग होने सामग्री की पूजा गया।

कैसे मनाया जाता है ?

इस दिन महिलाएं निर्जला रहकर शिव-पार्वती की पूजा करती हैं। महिलाएं एकत्रित हो कर दो सगरी(छोटा तालाब) के साथ मिट्टी की नाव बनाती है, और फूल-पत्तों से सगरी को सजाकर वहां महादेव व पार्वती की पूजा करती है। हलषष्ठी माता की छः कहानियां सुनाई जाती है।

विशेष भोजन एवं विधि :

इस दिन विशेष भोजन पारंपरिक रूप से पत्तल में किया जाता है। पतरी (पत्तल) के लिए विशेष रूप से महुआ के पत्तो का इस्तेमाल किया जाता है। पुराने समय मे खाना बनाने के लिए महुआ की लकड़ी एवं महुआ की लकड़ी से बनी करछुल ( खाना बनाने का चम्मच ) का इस्तेमाल हुआ करता था, परंतु वर्तमान समय में उपलब्धता ना होने की वजह से केवल महुआ के पत्तल और दोने का इस्तेमाल होता है।

इस दिन बनने वाले भोजन के लिए भी विशेष नियम है। भोजन के लिए इस्तेमाल होने वाले सामग्री को ऐसे स्थान से होना चाहिए जहां हल ना चला हो।

इस दिन पसहर चावल पकाया जाता है। भैंस का दूध और भैंस से दूध से ही बने घी एवं दही का इस्तेमाल किया जाता है। मुनगा के भाजी ( मुनगा के पत्ते ) के साथ छः अलग-अलग भाजी को मिलाया जाता है।
पूजा विधि के पूर्ण होने के बाद महिलाएं संतान बाएं (डेरी) कंधे पर कपड़े के टुकड़े से छुही के पानी को आशीर्वाद स्वरूप छः बार लगाया गया।