Zero Tillage Farming : पाटन के किसानों ने बदला खेती का तरीका,अब बिना जुताई के कर रहे खेती…जीरो टिलेज तकनीक से लागत हुई कम और मुनाफा ज्यादा

राजू वर्मा

पाटन। जलवायु अनुकूल खेती पर केंद्र एवं राज्य सरकार काम कर रही हैं। वहीं कृषि विज्ञानी भी इस पर जोर दे रहे हैं। पाटन ब्लाक में इसका असर भी देखने मिल रहा है। किसानों ने खेती का पारंपरिक तरीका बदलते हुए बिना जुताई के खेती कर रहे हैं। इस जीरो टिलेज तकनीक से जहां किसानों को प्रति एकड़ 2 हजार तक की बचत हो रही है। वहीं पानी की भी बचत हो रही है। बीते साल पाटन में इस तकनीक से करीब 20 एकड़ क्षेत्र में फसल ली गई। वहीं इस बार 40 एकड़ में किसान इस तकनीक से गेहूं की फसल ले रहे हैं।

पिछले कुछ वर्षों से मौसम का बदलता रूप खेती-किसानी के लिए चुनौती बनकर उभर रहा है। मौसम का अचानक बदल जाना अब एक स्थायी समस्या बनता जा रहा है। पूरे विश्व में जलवायु परिवर्तन के कारण मौसमी घटनाएं खेती किसानी के सामने नई चुनौती पैदा कर रही हैं। इससे निबटने जलवायु अनुकूल खेती पर जोर दिया जा रहा है। हमेशा देखने को मिलता है कि कम बारिश के कारण किसानों की चिंता भी बढ़ रही है. जरूरत होने पर भी कई-कई दिनों तक बरसात के दिनों में भी पानी नहीं बरसता है। ऐसे में जरूरत इस बात की है कि जलवायु अनुकूल कृषि तकनीक को अपनाया जाए। इस बीच पाटन के करगा और अमेरी गांव में एक बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है।

क्या है जीरो टिलेज खेती

धान की फसल कटाई के उपरांत उसी खेत में बिना जुताई किये शिड ड्रिल मशीन द्वारा गेहूं की बुवाई करने को जीरो टिल तकनीक कहते हैं। धान की कटाई के तुरन्त बाद मिट्टी व समुचित नमी रहने पर इस विधि से गेहूं की बुवाई कर देने से फसल अवधि में 15-20 दिन का आतिरिक्त समय मिल जाता है। जिसका असर उत्पादन पर पड़ता है।

दावा, इतनी बचत

इस तकनीक की सहायता से खेत की तैयारी में होने वाले खर्च में लगभग 2 हजार रूपये प्रति एकड़ बचत हो रही है, ऐसा दावा किसानों का है। जबकी परम्परागत ढंग से बुवाई करने पर दो से तीन बार खेत की जुताई करनी पड़ती, जिससे वातावरण भी दूषित होता है और श्रम भी अधिक लगता है। इस विधि से पानी की भी बचत होती है सामान्यतः गेंहू की फसल में तीन से चार बार पानी डालना होता है, लेकिन इस तकनीक से किसान मिट्टी की नमी का इस्तेमाल कर लेते हैं, वहीं धान के बचे हुए तने(नरई) खेत मे ही सड़ कर खाद का काम करते हैं।

करगा और अमेरी गांव में प्रयोग, और बढ़ गया रकबा

पाटन के करगा और अमेरी गाँव में पिछले वर्ष जलवायु अनुकूल खेती के लिए कृषि विज्ञान केंद्र के निकरा प्रोजेक्ट के तहत लगभग 20 एकड़ में वैज्ञानिक के माध्यम से किसानों से खेती कराई गई। किसानों को कम लागत और मेहनत में अच्‍छी उपज मिली, तो अन्‍य किसान भी इस ओर कदम बढ़ा रहे हैं। इस वर्ष लगभग 40 एकड़ में किसान इस तकनीक से खेती कर रहे हैं।

बयान

अमेरी और करगा में निकरा प्रोजेक्ट के माध्यम से जीरो टिलेज के माध्यम से गेंहू की खेती विगत वर्षों से सीनियर रिसर्च फेलो हर्षना चन्द्राकर के देखरेख में शुरू कराई गई। इस तकनीक से कम लागत, कम पानी, कम श्रम में बेहतर उत्पादन होता है।

डा विजय जैन, वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख, कृषि विज्ञान केंद्र, पहंदा अ

किसानों से बातचीत

बयान

इस तकनीक से खेती करने का लाभ मिल रहा है। फसल 20 से 25 दिन पहले आ जाता है। लागत भी बहुत कम और उत्पादन भी ज्यादा है। बीते साल एक वहीं इस साल चार एकड़ में इसी तकनीक से फसल लगाई है।

रमेश साहू, किसान, करगा –

बीते साल एक एकड़ में गेहूं की फसल ली थी, जुताई का खर्च की बचत होती है वहीं एक दौर का पानी भी बच जाता है। इस साल दो एकड़ में इसी तकनीक से फसल लगाई है।

गज्जू साहू, ग्राम करगा

बिना जुताई के इस तकनीक से मुझे भी राहत मिली है। पूर्व में केवल एक एकड़ में फसल ली थी, इसका लाभ भी हुआ। इस वर्ष इस तकनीक से तीन गुना ज्यादा क्षेत्र में फसल ले रहे हैं।

संतोष कुमार सोनकर, किसान ग्राम करगा